Publisher |
Rajkamal Parkashan Pvt Ltd |
Publication Year |
2022 |
ISBN-13 |
9789393768674 |
ISBN-10 |
9789393768674 |
Binding |
Paperback |
Number of Pages |
248 Pages |
Language |
(Hindi) |
Dimensions (Cms) |
21.5 x 13.5 x 1.2 |
Weight (grms) |
270 |
रामकथा में उर्मिला लगभग उपेक्षित पात्र है। लक्ष्मण के लम्बे विरह और उस दौरान अपने कर्तव्यों का उदात्त भाव से पालन करनेवाली उर्मिला के चरित्र को पर्याप्त विस्तार न तो वाल्मीकि रामायण में मिला है, और न ही तुलसी के मानस में। यह उपन्यास इसी अदीखते-से पात्र के व्यक्तित्व को विभिन्न आयामों से प्रकाशित करने का प्रयास है। सीता की भाँति उर्मिला को अपने प्रिय के साथ वन जाने का अवसर नहीं मिला, इसलिए स्वाभाविक ही उन्हें जनसाधारण के सम्पर्क में आने, उनके अभावों और प्रसन्नताओं को देखने का अवसर भी नहीं मिला। वे सदैव राजभवनों में रहीं। लेकिन क्या यह कहा जा सकता है कि सुख के उन तथाकथित आगारों में कष्टों और विडम्बनाओं के अनेक रूप देखने को नहीं मिलते! क्या यह सम्भव है कि राम, लक्ष्मण और सीता के प्रस्थान के बाद राजभवन और वहाँ रह गए लोगों की मन:स्थिति में आमूल परिवर्तन नहीं आया होगा? क्या उर्मिला ने सब कुछ सहते हुए, अपने कर्तव्यों का पालन करते हुए गहन दुख का सामना नहीं किया होगा!
Asha Prabhat
जन्म: 21 जुलाई, 1958 शिक्षा: स्नातक । हिंदी में प्रकाशित कृतियाँ: दरीचे (काव्य-संग्रह); धुंध में उगा पेड़, जाने कितने मोड़, मैं जनक नंदिनी (उपन्यास); कैसा सच (कथा-संग्रह) । उर्दू में प्रकाशित कृतियाँ: धुंध में उगा पेड़, जाने कितने मोड़ (उपन्यास)। मरमूज (शेरी मजमूआ); वह दिन (अफसानवी मजमूआ)। लिप्यंतरण एवं संपादन: साहिर समग्र (साहिर लुधियानवी का रचना-संसार) । सम्मान: बिहार राष्ट्र भाषा परिषद् द्वारा 'साहित्य सेवा सम्मान', बिहार उर्दू अकादमी द्वारा 'सुहैल अजीमावादी अवार्ड' और 'खसूसरी अवार्ड', 'प्रेमचंद सम्मान', 'दिनकर सम्मान', 'उर्दू दोस्त सम्मान' आदि । संप्रति: स्वतंत्र लेखन व पत्रकारिता
Asha Prabhat
Rajkamal Parkashan Pvt Ltd