Hadapada Appanna-Lingam

Author :

Kashinath Ambalge

Publisher:

LOKBHARTI PRAKASHAN

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Publisher

LOKBHARTI PRAKASHAN

Publication Year 2020
ISBN-13

9789389742015

ISBN-10 9389742013
Binding

Hardcover

Number of Pages 96 Pages
Language (Hindi)
Dimensions (Cms) 22.5 X 14.5 X 1
ध्यान करना चाहूँ तो क्या ध्यान करूँ। मन तेजोहीन धुँधला पड़ गया था, तन शून्य हो गया था। कायक गुण गल चुका। देह से अहं मिट गया था। अपने आपसे प्रकाश में झूमते मैं सुखी बनी अप्पण्णाप्रिय चन्नबसवण्णा॥ मन याद कर रहा है। बुरी विषय वासना की ओर मन बहक रहा है। डाली की चोटी की ओर जा रहा है मन मन किसी भी नियम में बँधता नहीं, छोड़ देने पर मन जाता भी नहीं। अपनी इच्छा पर मनमानी करते मन को नियम में बाँधकर लक्ष्य में स्थिर करके शून्य में विहरनेवाले शरणों के चरणों में मैं समा रही अप्पण्णाप्रिय चन्नबसवण्णा॥ —लिंगम्मा घास-फूस-कचरा निकालकर स्वच्छ किए हुए खेत में कूड़ा-करकट बोनेवाले पागलों की तरह विषय-सुखों के झूठे भ्रम में लोलुप होकर तकलीफ़ में पड़नेवाले मनुष्य कैसे जान सकते महाघन गुरु के स्वरूप को? मरण बाधा में पड़नेवाले आपको कैसे जान सकते हैं बसवप्रिय कूडल चन्नबसवण्णा? ॥ भूख मिटाने अन्न स्वीकार करते हैं, विषय के मोह में झूठ बोलते हैं, नए-नए व्यसन में पड़कर भस्म धारण करके सारा विश्व घूमते हैं। इस मिथ्या को छोड़कर, माया के धुँधलेपन को दूर किए बिना नहीं समा सकता हमारा बसवप्रिय कूडल चन्नबसवण्णा॥ —अप्पण्‍णा

Kashinath Ambalge

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